हमारे देश की हरियाली, जैव-विविधता और शुद्ध हवा की रक्षा करने वाले वन कर्मियों के अदम्य साहज और उनके सर्वोच्च बलिदान को सम्मान देने के लिए हर साल 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस (National Forest Martyrs Day) मनाया जाता है। यह दिन उन अननाम नायकों की याद में समर्पित है, जिन्होंने देश के जंगलों और वन्यजीवों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
2025 में यह दिवस बुधवार, 11 सितंबर को मनाया जाएगा।
इस दिन का ऐतिहासिक सच्चाई से गहरा नाता
इस दिन की तारीख को केवल एक औपचारिकता के तौर पर नहीं चुना गया। इसकी जड़ें भारत के इतिहास में एक दर्दनाक घटना से जुड़ी हैं। यह घटना है 1730 की क्षेत्र की क्रांति (Khejarli Massacre)।
उस समय राजस्थान के जोधपुर रियासत के महाराजा अभय सिंह ने अपने नए महल के निर्माण के लिए लकड़ी की जरूरत थी। राजा के सैनिक खेजड़ली गाँव पहुंचे और खेजड़ी के पेड़ (जो कि स्थानीय लोगों के लिए पवित्र और जीवनदायिनी थी) काटने लगे। इसका विरोध करने के लिए अमृता देवी नामक एक महिला ने आगे बढ़कर कहा कि अगर पेड़ काटने हैं तो पहले उनकी बलि लें। उन्होंने कहा, “सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” (यानी, अगर एक पेड़ बचाने के लिए सिर कटाना पड़े, तो यह सस्ता सौदा है)।
यह कहकर उन्होंने पेड़ से चिपक कर अपनी जान दे दी। उनकी तीन बेटियों ने भी यही रास्ता अपनाया। यह देखकर गाँव के 363 लोगों ने एक के बाद एक अपनी जान दे दी, लेकिन पेड़ों को कटने नहीं दिया। इस नरसंहार ने राजा को झकझोर दिया और उसने तुरंत पेड़ काटने का आदेश वापस ले लिया।
बाद में, भारत सरकार ने इसी बलिदान की याद में 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में औपचारिक मान्यता दी।
इस दिन का महत्व क्या है?
राष्ट्रीय वन शहीद दिवस को मनाने का मकसद सिर्फ इतिहास को याद करना नहीं है, बल्कि कई गहरे उद्देश्य हैं:
- शहीदों को श्रद्धांजलि: यह दिन उन सभी वन अधिकारियों, रेंजरों, गार्डों और कर्मचारियों के अतुल्य योगदान और बलिदान को याद करने का दिन है, जो वन्यजीव तस्करों, अवैध कटाई करने वालों और दस्युओं से लड़ते हुए शहीद हो गए।
- जागरूकता फैलाना: आम जनता को जंगलों के महत्व, पर्यावरण संरक्षण और उन खतरों के बारे में बताना जिनका सामना हमारे वनरक्षक रोज करते हैं।
- मनोबल बढ़ाना: देशभर के वन कर्मियों का हौसला बढ़ाना और उन्हें यह एहसास दिलाना कि देश उनके संघर्ष और बलिदान की सराहना करता है।
- भविष्य के लिए संदेश: यह दिन आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि प्रकृति की रक्षा करना हम सबका नैतिक दायित्व है।
कैसे मनाया जाता है यह दिन?
इस दिन केंद्रीय और राज्य सरकारों के वन विभाग द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं:
- शहीद स्मारकों पर श्रद्धांजलि: देशभर के वन शहीद स्मारकों पर फूलमाला अर्पित कर और दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को याद किया जाता है।
- सेमिनार और वेबिनार: पर्यावरण संरक्षण और वन कर्मियों की सुरक्षा पर चर्चा के लिए गोष्ठियों का आयोजन।
- वृक्षारोपण अभियान: शहीदों की याद में पौधे लगाकर उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास।
- स्कूल-कॉलेजों में कार्यक्रम: नई पीढ़ी को इस बलिदान गाथा से अवगत कराने के लिए निबंध, भाषण और पेंटिंग प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
एक सोचने वाली बात…
आज 2024 में, जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन एक बड़ा खतरा बन चुका है, तब वन शहीदों का बलिदान और भी प्रासंगिक हो जाता है। यह दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारी सुरक्षित हवा, पानी और जैव-विविधता की रक्षा के लिए कोई व्यक्ति अपना ‘आज’ हमारे ‘कल’ के लिए कुर्बान कर रहा है।
इस राष्ट्रीय वन शहीद दिवस पर, आइए हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम पेड़-पौधों का संरक्षण करेंगे, जल संरक्षण करेंगे और उन सभी वन्यजीवन रक्षकों का सम्मान करेंगे, जो दिन-रात हमारे प्रकृति के रक्षक के तौर पर डटे हुए हैं।
जय हिन्द, जय भारत के वन शहीद!