मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर में कलेक्टर श्रीमती रानी बाटड़ ने सरकारी स्कूलों की शिक्षा की स्थिति सुधारने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है। जानिए कैसे जिलाधिकिकारी खुद क्लासरूम में जाकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
हमारे देश में अक्सर अफसरों को फाइलों और मेजों के पीछे काम करते देखा जाता है। लेकिन मध्य प्रदेश के मैहर में जिलाधिकारी ने इस स्टीरियोटाइप को तोड़ते हुए एक मिसाल कायम की है। सतना जिले के कलेक्टर श्रीमती रानी बाटड़ सिर्फ अपने ऑफिस तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अब वह प्राइमरी स्कूलों की कक्षाओं में पहुंचकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
कलेक्टर श्रीमती रानी बाटड़ ने जिले के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को करीब से समझने का फैसला किया। इसी कड़ी में, उन्होंने न सिर्फ स्कूलों का निरीक्षण किया, बल्किन एक शिक्षक की भूमिका भी निभाई। वह सीधे तौर पर क्लासरूम में जाते हैं, बच्चों के बीच बैठते हैं और उन्हें पढ़ाना शुरू कर देते हैं।
क्यों शुरू किया इस पहल को?
इस पहल के पीछे का मकसद साफ है। अक्सर रिपोर्ट्स और नंबरों के जरिए ही शिक्षा का स्तर मापा जाता है। लेकिन कलेक्टर महोदय ने महसूस किया कि असली तस्वीर तो तभी सामने आएगी जब वह खुद मैदानी स्तर पर जाकर देखेंगे। बच्चों को पढ़ाने का उनका यह अभियान सिर्फ एक सिंबलिक एक्शन नहीं है, बल्कि इसका मकसद शिक्षकों को प्रेरित करना और सिस्टम में सुधार लाना भी है।
बच्चों और शिक्षकों पर क्या असर पड़ रहा है?
जब बच्चों ने देखा कि उनके जिले का सबसे बड़ा अधिकारी उनके साथ बैठकर पढ़ाई कर रहा है, तो उनका उत्साह देखने लायक था। इससे न सिर्फ बच्चों का मनोबल बढ़ा है, बल्कि शिक्षक भी और ज्यादा मेहनत से पढ़ाने के लिए प्रेरित हुए हैं। एक शिक्षक ने बताया, “जब कलेक्टर साहब खुद समय निकालकर यहां आ रहे हैं, तो हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपना काम और बेहतर तरीके से करें।”
आगे की राह क्या है?
कलेक्टर श्रीमती रानी बाटड़ की यह पहल सिर्फ एक-दो दिन की घटना नहीं है, बल्कि इसे एक नियमित अभियान के तौर पर शुरू किया गया है। उनका कहना है कि वह हफ्ते में कम से कम एक बार जरूर किसी न किसी स्कूल में जाकर बच्चों से रूबरू होंगे। इसके अलावा, स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं – जैसे साफ-सफाई, शुद्ध पानी और बैठने की व्यवस्था – को दुरुस्त करने पर भी खास जोर दिया जा रहा है।
निष्कर्ष:
मैहर कलेक्टर की यह पहल वाकई में काबिल-ए-तारीफ है। इससे साफ जाहिर होता है कि अगर इरादे नेक हों और काम करने का तरीका ईमानदार हो, तो व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्री हजेला का यह कदम दूसरे जिलों के लिए भी एक मिसाल बनेगा और हमारी शिक्षा व्यवस्था और मजबूत होगी।