भारत में ज़मीन या प्लॉट खरीदना किसी सपने को सच करने जैसा है। लेकिन अक्सर, जानकारी के अभाव में यही सपना एक बड़े सिरदर्द में बदल जाता है। ज़मीन के ठगी के मामले आए दिन सुनने को मिलते हैं, जहाँ एक पूरे जीवन की कमाई डूब जाती है।
एक पत्रकार होने के नाते, मैंने ऐसे सैकड़ों मामलों की रिपोर्टिंग की है। एक ही चीज़ सभी पीड़ित लोगों में कॉमन थी: रजिस्ट्री के दस्तावेज़ों (Land Registry Documents) की सही जानकारी न होना।
अगर आप भी ज़मीन खरीदने-बेचने का सोच रहे हैं, तो यह पोस्ट आपके लिए एक गाइड की तरह है। यहाँ हम आसान भाषा में समझेंगे कि रजिस्ट्री से पहले आपको किन-किन दस्तावेजों को अच्छी तरह चेक करना चाहिए।
1. 7/12 दस्तावेज (7/12 Utara or Extract)
- यह क्या है? यह सबसे अहम दस्तावेज है। इसे ज़मीन का आधार कार्ड समझ सकते हैं। इसमें ज़मीन का सर्वे नंबर, क्षेत्रफल, मालिक का नाम, फसल का विवरण और किसी भी तरह का ऋण (लोन) या कर्ज़ (Charge) का ब्यौरा होता है।
- क्यों ज़रूरी है? इससे आपको पता चलता है कि जिससे आप खरीद रहे हैं, वह वाकई में ज़मीन का मालिक है भी या नहीं और कहीं उस पर किसी बैंक का कोई कर्ज़ तो नहीं है।
2. खसरा खतौनी (Khasra/Khatouni)
- यह क्या है? यह रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (Record of Rights) है। यह दस्तावेज भूमि के मालिकाना हक की जानकारी देता है। अगर 7/12 ज़मीन का बायोडाटा है, तो खतौनी उसका मालिकाना हक बताने वाला प्रूफ है।
- क्यों ज़रूरी है? इसे देखकर आप पक्का कर सकते हैं कि ज़मीन पर वर्तमान मालिक का हक है और उसके नाम की Entry सही है।
3. मौजूदा और पिछले मालिकों का रिकॉर्ड (Title Deed/Parent Deed)
- यह क्या है? यह वह दस्तावेज है जो बताता है कि वर्तमान मालिक के पास यह ज़मीन आई कहाँ से। यानी, पिछले मालिक से उसे कब और कैसे खरीदा गया। इसकी एक चेन बनती है, जिसे “Title Chain” कहते हैं।
- क्यों ज़रूरी है? अगर इस चेन में कहीं भी कोई गैप है या दस्तावेज गायब है, तो यह एक बड़ा रेड फ्लैग है। इससे पता चलता है कि ज़मीन का स्वामित्व साफ़ है या नहीं।
4. एनएसी/एनएओसी (NOC – No Objection Certificate)
- यह क्या है? अगर ज़मीन किसी सोसाइटी, ग्रुप हाउसिंग या फिर कृषि भूमि है, तो संबंधित अथॉरिटी (जैसे हाउसिंग बोर्ड, पंचायत) से कोई आपत्ति प्रमाणपत्र लेना ज़रूरी होता है।
- क्यों ज़रूरी है? इससे पता चलता है कि संबंधित अथॉरिटी को ज़मीन के ट्रांसफर में कोई आपत्ति नहीं है और सारे ड्यूज़ क्लियर हैं।
5. ज़मीन की माप (Land Measurement & Map)
- यह क्या है? दस्तावेजों में लिखे क्षेत्रफल और ज़मीन की असल माप में फर्क न हो, इसकी जाँच ज़रूर करें। तहसीलदार या पटवारी की मदद से ज़मीन का सर्वे करवाएँ।
- क्यों ज़रूरी है? कई केसों में कागज़ों पर तो बड़ा प्लॉट दिखता है, लेकिन असलियत में उसका आकार छोटा होता है। यह एक आम धोखाधड़ी है।
6. लोन/ऋण मुक्ति प्रमाणपत्र (Encumbrance Certificate – EC)
- यह क्या है? यह सर्टिफिकेट तहसील दफ्तर से मिलता है और यह साबित करता है कि उस ज़मीन पर किसी भी तरह का कोई लोन, कर्ज़ या लीगल चार्ज (Legal Charge) मौजूद नहीं है।
- क्यों ज़रूरी है? अगर ज़मीन पर बैंक का लोन चल रहा है, तो आप उसे नहीं खरीद सकते। EC लेने से पता चल जाता है कि ज़मीन पूरी तरह से “डेट-फ्री” है।
7. ज़मीन का प्रकार (Land Type & Use)
- यह क्या है? यह जाँचना बेहद ज़रूरी है कि जो ज़मीन आप खरीद रहे हैं, वह उसी श्रेणी की है या नहीं। जैसे, अगर ज़मीन एग्रीकल्चरल (कृषि) है और आप उस पर घर बनाना चाहते हैं, तो उसे नॉन-एग्रीकल्चरल (NA) में कन्वर्ट करवाना पड़ेगा।
- क्यों ज़रूरी है? गैर-कानूनी तरीके से एग्रीकल्चरल लैंड पर कंस्ट्रक्शन करने पर भविष्य में बुलडोज़र का खतरा रहता है।
अंतिम सलाह (Final Verdict)
भाईयो और बहनो, ज़मीन का सौदा कोई मोलभाव करने जैसा नहीं है। एक बार पैसा चुकाने के बाद पछताने से अच्छा है कि सौदा करने से पहले ही सतर्क हो जाएँ।
- कभी भी अकेले दस्तावेज न चेक करें। हमेशा किसी अच्छे वकील (Property Lawyer) की मदद लें।
- सारे दस्तावेजों की ओरिजिनल कॉपी खुद देखें और उनकी फोटोकॉपी अपने पास रखें।
- स्थानीय तहसील दफ्तर या पटवारी से सारी जानकारी क्रॉस-चेक ज़रूर करें।