लाल सागर में इंटरनेट केबल टूटने का मामला: जानिए क्यों आएंगे कई महीने रिपेयर में, कैसे पड़ेगा असर?

हाल ही में दुनिया भर के इंटरनेट यूजर्स को एक बड़ा झटका लगा है। लाल सागर में बिछी समुद्र के नीचे की कई महत्वपूर्ण इंटरनेट केबल्स क्षतिग्रस्त हो गई हैं। यह घटना न सिर्फ एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के बीच की डिजिटल लाइफलाइन को प्रभावित कर रही है, बल्कि इसकी मरम्मत में भी कई लंबे महीने लगने की आशंका जताई जा रही है। चलिए, आपको सामान्य भाषा में समझाते हैं कि आखिर हुआ क्या है और इसके मायने क्या हैं।

क्या हुआ exactly?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, लाल सागर के इलाके में कम से कम ४-५ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट केबल्स को नुकसान पहुंचा है। ये केबलें ही वो सुपरहाइवे हैं जिनके जरिए दुनिया के अलग-अलग महाद्वीपों के बीच डेटा का विशाल प्रवाह होता है, जिसमें वेबसाइट एक्सेस, वीडियो कॉल, ऑनलाइन ट्रेडिंग और बैंकिंग जैसी सभी चीजें शामिल हैं।

सबसे बड़ा सवाल: केबल टूटी कैसे?

यही वो सवाल है जिस पर सबकी नजर है। आधिकारिक तौर पर अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन विशेषज्ञों और सूत्रों की मानें तो इसके पीछे लाल सागर में चल रहे जिबूती के पास जहाजों के एंकर ड्रैगिंग की घटनाओं को प्रमुख वजह माना जा रहा है। दरअसल, इस संवेदनशील इलाके में जहाजों की movement के दौरान many times उनके भारी-भरकम एंकर (लंगर) समुद्र तल पर घसीटते हैं। ऐसे में अगर ये एंकर इन नाजुक केबलों के ऊपर से गुजर जाएं, तो वे आसानी से टूट या क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।

कुछ रिपोर्ट्स यह भी इशारा कर रही हैं कि इस इलाके में चल रहे geopolitical tensions और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियों के चलते केबल्स की नियमित निगरानी और रखरखाव का काम भी प्रभावित हुआ हो सकता है।

मरम्मत में इतना समय क्यों लगेगा?

यह कोई साधारण मोबाइल का वायर बदलने जैसा काम नहीं है। समुद्र के नीचे हज़ारों फीट गहराई में बिछी इन केबलों की मरम्मत एक बेहद जटिल और time-consuming ऑपरेशन है।

  1. विशेष जहाज और मौसम: सबसे पहले तो इनकी मरम्मत के लिए विशेष प्रकार के जहाजों (Cable Repair Ships) की जरूरत होती है, जो दुनिया में limited numbers में available हैं। फिर, मौसम समुद्र की स्थितियां अनुकूल होनी चाहिए। तूफान या खराब मौसम में काम करना मुश्किल होता है।
  2. लोकेशन का पता लगाना: सबसे पहले exact location ढूंढना पड़ता है कि केबल कहाँ टूटी है। इसमें अक्सर दिनों का समय लग जाता है।
  3. मरम्मत की प्रक्रिया: केबल को ढूंढकर समुद्र से बाहर निकाला जाता है, फिर उसे दोनों तरफ से जोड़ा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में कई बार हफ्तों का वक्त लग जाता है। और चूंकि एक से ज्यादा केबलें damage हुई हैं, तो उन सबको repair करने के लिए अलग-अलग operations चलाने पड़ेंगे।

आम जन और negosiyo (बिजनेस) पर क्या होगा असर?

भारत जैसे देशों के लिए, इसका सीधा असर यूरोप और अमेरिका की तरफ जाने वाली इंटरनेट ट्रैफिक पर पड़ेगा।

  • इंटरनेट की स्पीड: users को कुछ websites और services तक पहुंचने में slow speed का सामना करना पड़ सकता है। ऑनलाइन गेमिंग और वीडियो स्ट्रीमिंग में buffering की problem हो सकती है।
  • बिजनेस पर असर: जो कंपनियां अंतरराष्ट्रीय लेन-देन, cloud services और overseas communication पर निर्भर हैं, उनके काम में रुकावट आ सकती है। डेटा ट्रांसफर में देरी हो सकती है।
  • नेटवर्क का रीरूटिंग: अच्छी बात यह है कि major internet companies अपने डेटा को दूसरे मार्गों (alternative routes) से redirect करने का काम कर रही हैं, जैसे कि प्रशांत महासागर के रास्ते। इससे प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सकता है, लेकिन यह permanent solution नहीं है और इसमें भी latency (देरी) की समस्या हो सकती है।

निष्कर्ष:

हमारी डिजिटल दुनिया की नींव physical infrastructure पर टिकी है, जो कई बार बाहरी खतरों के प्रति संवेदनशील हो सकती है। यह incident global internet connectivity की नाजुकता और उसके लिए robust backup systems की अहमियत को रेखांकित करता है। अब उम्मीद यही है कि मरम्मत का काम जल्द से जल्द शुरू हो और सामान्य स्थिति बहाल हो।

मैं रितेश रावत एक स्नातक छात्र हूं और ऑटोमोबाइल,टेक्नोलॉजी एवं न्यूज़ कैटेगरी में कंटेंट राइटर के रूप में काम करता हूं। मुझे नई कारों, बाइकों, खबरों और आधुनिक तकनीकों के बारे में लिखना बेहद पसंद है। मेरा लक्ष्य है कि मैं अपने लेखों के माध्यम से पाठकों को सरल, रोचक और भरोसेमंद जानकारी प्रदान कर सकूं, ताकि वे ऑटो और टेक्नोलॉजी की दुनिया से हमेशा अपडेट रहें।

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