भोपाल। मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने प्रशासनिक अफसरों की ढिलाई बर्दाश्त न करने का सख्त संदेश देते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। सितंबर 2025 के अंत में हुई एक हाई-लेवल बैठक में, मुख्यमंत्री यादव ने प्रदेश के पांच जिलों के कलेक्टरों को कड़ी फटकार लगाई और उन्हें अगले 30 दिनों के भीतर अपने-अपने जिलों के कामकाज में जबरदस्त सुधार लाने का आदेश दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, यह चेतावनी उन जिलों के कलेक्टरों को दी गई है, जहाँ सरकार की प्रमुख जनकल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन सबसे धीमा चल रहा है। कहा जा रहा है कि CM ने नाराजगी जताते हुए कहा कि, “अब बहानेबाजी बंद करके जमीन पर काम दिखाइए।”
किन मापदंडों पर हुआ कलेक्टरों का आकलन?
बताया जा रहा है कि सरकार ने जिन मुख्य बिंदुओं पर इन जिलों के प्रदर्शन को ‘नाकाफी’ पाया, वो हैं:
- विजयराघवगढ़ से बीजेपी विधायक संजय पाठक पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने आदिवासी समुदाय के चार लोगों के नाम पर करीब 1111 एकड़ जमीन की खरीद की है। इस मामले की जांच अब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग करेगा।सूत्रों के मुताबिक, आयोग ने सोमवार को कटनी, जबलपुर, डिंडौरी, सिवनी और उमरिया जिलों के कलेक्टरों को नोटिस भेजा है और 30 दिनों के भीतर विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी है। साथ ही आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि तय समय में जवाब न मिलने पर वह सिविल कोर्ट जैसी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए संबंधित अधिकारियों को समन भेज सकता है।
- ‘लाडली बहना योजना’ का स्लो एक्जिक्यूशन: इस प्रमुख योजना के तहत महिलाओं को होने वाली वित्तीय सहायता का लाभ पात्र लाभार्थियों तक पहुँचाने में देरी।
- किसानों के खाते में नहीं पहुँचा राहत कोष: फसल नुकसान की स्थिति में किसानों को मुआवजे की राशि का तेजी से वितरण न होना।
- बुनियादी ढाँचे के कामों में ढिलाई: सड़क निर्माण, स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों के काम में अनावश्यक देरी।
- जनसमस्याओं का त्वरित निपटारा न होना: जनसुनवाई में आने वाली शिकायतों का निपटारा करने में धीमी गति।
किस-किस जिले के कलेक्टरों पर है नजर?
हालाँकि आधिकारिक तौर पर सभी पांच जिलों के नामों का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पश्चिमी MP के कुछ और बुंदेलखंड क्षेत्र के कुछ जिले इस लिस्ट में शामिल हैं। इन जिलों में विकास दर राज्य के औसत से काफी नीचे चल रही है।
आगे की रणनीति क्या है?
मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) से मिली खबर है कि अगले 30 दिनों के बाद इन जिलों के प्रदर्शन की फिर से समीक्षा की जाएगी।
- अगर काम में सुधार हुआ: तो ठीक है।
- अगर हालात वही रहे: तो इन कलेक्टरों के खिलाफ कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें तबादला या फिर निलंबन जैसे कदम भी शामिल हो सकते हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यह सीधे तौर पर एक अल्टीमेटम है। सरकार का इरादा साफ है – अब विकास का ठोस नतीजा चाहिए, कागजी दावे नहीं।”
क्या है इसका मतलब? (क्यों है यह ख़बर महत्वपूर्ण?)
यह खबर इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे साफ पता चलता है कि मोहन यादव सरकार का फोकस सिर्फ योजनाएं बनाने पर नहीं, बल्कि उन्हें जमीन पर उतारने पर है। आमतौर पर अफसरों के तबादले होते रहते हैं, लेकिन किसी को पहले ‘समय’ देकर उसका प्रदर्शन सुधारने का मौका देना एक नई रणनीति लगती है। इसका मकसद अफसरों पर दबाव बनाना है ताकि आखिरी जनता तक योजनाओं का फायदा पहुंच सके।
कुल मिलाकर: मध्य प्रदेश सरकार ने अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए एक अहम पहल की है। अब देखना यह है कि आने वाले एक महीने में इन पांच जिलों के कलेक्टर कैसा प्रदर्शन दिखाते हैं और क्या वाकई जनता को इसका फायदा मिल पाता है।