नेपाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं का एकजुट आंदोलन तूफान बन गया। जानिए कैसे जनरेशन-जेड के गुस्से ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कुर्सी हिला दी और एक नया इतिहास रच दिया। पूरी कहानी सिर्फ Quora24.com पर।
नेपाल की सड़कों पर इन दिनों जो नज़ारा देखने को मिला, वो सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था – “अब बस हो चुका है!” यह संदेश था एक नए जमाने, एक नई पीढ़ी का, जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करके सत्ता के गलियारों में भूचाल ला दिया। इस आंदोलन की ताकत बने नौजवान, जिन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया।
यह कोई सामान्य राजनीतिक उठा-पटक नहीं थी। यह था ‘जनरेशन जेड’ का एक सुनियोजित, शांतिपूर्ण लेकिन अडिग आक्रोश, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा।
आखिर शुरुआत हुई कैसे?
सब कुछ शुरू हुआ एक सरकारी भ्रष्टाचार के आरोप से। सरकार पर यह आरोप लगा कि उसने एक सुरक्षा घोटाले में दलाली की है। यह आरोप जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा। यह वही पीढ़ी है जो इंटरनेट, सोशल मीडिया और डिजिटल संचार में माहिर है। उन्होंने इसी ताकत का इस्तेमाल करते हुए आंदोलन को एकजुट किया।
टिकटॉक, Instagram, Facebook और X (पहले Twitter) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर हैशटैग्स ट्रेंड होने लगे। युवाओं ने ऑनलाइन पेटीशन्स शुरू कीं और विरोध प्रदर्शन के लिए लोगों को जुटाया। यह आंदोलन किसी एक राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि आम नागरिकों का था।
सड़कों पर उतरा ‘जनरेशन जेड’ का गुस्सा
जो तस्वीरें सामने आईं, वो हैरान कर देने वाली थीं। हज़ारों की संख्या में स्कूल-कॉलेज के छात्र, युवा पेशेवर और आम नागरिक सड़कों पर उतरे। उनके हाथों में पोस्टर थे, जिन पर लिखा था – “हमें भ्रष्टाचार नहीं चाहिए”, “देश बचाओ”, “सिस्टम बदलो”।
युवाओं ने रैलियां निकालीं, सरकारी भवनों के बाहर शांतिपूर्ण धरना दिया। उनकी मांग साफ थी – भ्रष्टाचार के आरोपों की निष्पक्ष जांच और प्रधानमंत्री ओली का इस्तीफा। यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक था, लेकिन इतना ताकतवर जरूर था कि सरकार के पसीने छूट गए।
आखिरकार झुकना पड़ा सिर
लगातार बढ़ते दबाव और जनआक्रोश के आगे सरकार की नींद उड़ गई। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के पास अपना इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। उन्होंने संसद भंग करने का रास्ता अपनाया, लेकिन युवाओं का गुस्सा शांत नहीं हुआ। आखिरकार, उन्हें पद छोड़ना ही पड़ा।
यह सिर्फ एक प्रधानमंत्री का इस्तीफा भर नहीं था, बल्कि यह नेपाल के इतिहास में एक मिसाल कायम हुई। यह पहला मौका था जब किसी गैर-राजनीतिक, युवा-नेतृत्व वाले आंदोलन ने इतना बड़ा बदलाव ला दिया।
क्या है इस आंदोलन की सीख?
नेपाल का यह युवा आंदोलन दुनिया के लिए एक बड़ी सीख है। इसने साबित कर दिया कि:
- सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं, बल्कि बदलाव की ताकत है: युवाओं ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सही इस्तेमाल करके एक बड़ा जनसमूह तैयार किया।
- एकजुटता में ताकत है: बिना किसी नेता के, सभी युवा एक साथ आए और अपनी मांगों पर अडिग रहे।
- अहिंसक आंदोलन भी सत्ता को हिला सकता है: बिना हिंसा किए, शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताकर भी बड़ी से बड़ी सत्ता को झुकाया जा सकता है।
अंत में,
नेपाल की यह घटना सिर्फ एक देश की कहानी नहीं है, बल्कि यह दुनिया के हर युवा के लिए एक प्रेरणा है। यह दिखाता है कि अगर इरादे नेक हों और जुनून सच्चा हो, तो उम्र और अनुभव की कमी भी मंजिल का रोड़ा नहीं बन सकती। भ्रष्टाचार के खिलाफ नेपाल के युवाओं की यह लड़ाई इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है।