दुनिया आज कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रही है, लेकिन भारत लगातार एक स्थिर, समावेशी और न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की वकालत कर रहा है। इसी कड़ी में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक बार फिर एक अहम मुद्दे पर दुनिया का ध्यान खींचा है। उन्होंने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक व्यापार को आसान बनाने पर तुरंत ध्यान देना चाहिए और अपना ज़्यादा फोकस ‘ग्लोबल साउथ’ यानी विकासशील देशों पर केंद्रित करना चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, डॉ. जयशंकर ने हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी बात रखी। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज दुनिया में व्यापार करना अब भी कई देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। अनावश्यक जटिलताएं, भौगोलिक रुकावटें और पक्षपातपूर्ण नीतियां वैश्विक अर्थव्यवस्था की रफ्तार को धीमा कर रही हैं। ऐसे में, अगर दुनिया को सही मायनों में आगे बढ़ना है, तो व्यापारिक रास्तों को सरल और निष्पक्ष बनाना होगा।
‘ग्लोबल साउथ’ क्यों है इतना ज़रूरी?
‘ग्लोबल साउथ’ शब्द मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अन्य क्षेत्रों के विकासशील देशों के लिए इस्तेमाल होता है। डॉ. जयशंकर ने सही ही कहा कि अब तक की वैश्विक नीतियों में अक्सर इन देशों की उपेक्षा हुई है। ये देश संसाधनों से भरपूर हैं और इनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा है, जो वैश्विक विकास की धुरी बन सकता है।
इन देशों को अगर उचित अवसर, तकनीक और निवेश मिले, तो न सिर्फ़ उनकी अपनी economy मजबूत होगी, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को इसका फायदा मिलेगा। भारत इन देशों की आवाज़ को मजबूती से उठा रहा है और यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय फैसले सबके हित में हों, सिर्फ़ कुछ चुनिंदा देशों के नहीं।
भारत की भूमिका और आगे की राह
भारत, G20 की अध्यक्षता के दौरान भी ‘ग्लोबल साउथ’ की priorities को सबसे आगे रख चुका है। डॉ. जयशंकर का यह बयान उसी निरंतर प्रयास का हिस्सा है। भारत चाहता है कि:
- व्यापार के नियम सरल हों: ताकि छोटे और बड़े हर तरह के देश बिना अड़चन के व्यापार कर सकें।
- सप्लाई चेन मजबूत हो: महामारी और युद्ध ने दिखा दिया है कि कैसे Supply Chain टूटने से पूरी दुनिया प्रभावित होती है।
- निवेश और तकनीक का प्रवाह बढ़े: विकसित देश विकासशील दुनिया में Infrastructure और Technology में निवेश बढ़ाएं।
निचोड़ (Conclusion):
विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान सिर्फ़ एक भाषण नहीं, बल्कि आने वाले समय की वैश्विक नीतियों के लिए एक रोडमैप है। दुनिया तभी तरक्की करेगी जब हर देश, खासकर ग्लोबल साउथ, तरक्की की दौड़ में शामिल होगा। भारत इस मामले में न केवल एक मजबूत आवाज़ बनकर उभरा है, बल्कि दूसरे विकासशील देशों के लिए एक प्रेरणा भी बन गया है।