भगत सिंह: सिर्फ एक शहीद नहीं, एक विचार था जो आग बनकर जलता रहा

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आज जब भी देश की आज़ादी की बात चलती है, एक चेहरा हर नौजवान की आँखों में एक चिंगारी की तरह कौंध जाता है। वह चेहरा है शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का। उनकी ज़िंदगी की कहानी सिर्फ एक क्रांतिकारी की दास्तान नहीं, बल्कि एक सोच का वो मैनिफेस्टो है जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी।

28 सितंबर, 1907 को पैदा हुए भगत सिंह का खून तो आज़ादी की लड़ाई से ही दौड़ रहा था। उनके चाचा अजीत सिंह और पिता किशन सिंह भी आज़ादी की लड़ाई के सिपाही थे। लेकिन भगत सिंह ने जो रास्ता चुना, वो नया था, बेहद दुस्साहसिक था और सिस्टम को सीधे चुनौती देने वाला था।

सिर्फ बम और पिस्तौल नहीं, किताबें थीं उनका असली हथियार

एक बड़ी गलतफहमी यह है कि भगत सिंह को सिर्फ एक हिंसक क्रांतिकारी के तौर पर देखा जाता है। हकीकत यह है कि वह एक गहरे विचारक और पढ़ाकू इंसान थे। जेल में रहते हुए भी वह लेनिन, मार्क्स और गोर्की जैसे विचारकों की किताबें पढ़ते थे। उनका मानना था कि बिना एक स्पष्ट विचारधारा के, आज़ादी की लड़ाई अधूरी है। उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दिया, जो सिर्फ अंग्रेजों को भगाने का नहीं, बल्कि एक नए और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का नारा था।

असेंबली में बम फेंकना था मकसद, मारना नहीं

8 अप्रैल, 1929 की वह ऐतिहासिक घटना। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में धमाका किया। इस एक्शन का मकसद किसी को मारना नहीं, बल्कि ‘बहरों को सुनाना’ था। उन्होंने खुद को गिरफ्तार करवाया और इस मौके को अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए एक प्लेटफॉर्म की तरह इस्तेमाल किया। कोर्ट में उनके बयानों ने अंग्रेजी अदालत की नींद उड़ा दी थी।

23 साल की उम्र में फाँसी, और एक अमर विरासत

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च, 1931 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। कहा जाता है कि उन्हें निर्धारित समय से एक दिन पहले ही शहीद कर दिया गया था। उस वक्त तक पूरा देश उनकी रिहाई की माँग कर रहा था। उनकी शहादत ने आज़ादी की लड़ाई में एक नया जोश भर दिया। लाखों युवाओं ने उनके बलिदान से प्रेरणा लेकर देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।

आज के दौर में भगत सिंह की प्रासंगिकता

आज भगत सिंह सिर्फ एक इतिहास का पन्ना नहीं हैं। वह एक आइडिया हैं। जब भी देश में अत्याचार, भ्रष्टाचार और गैर-बराबरी के खिलाफ आवाज़ उठती है, भगत सिंह का विचार फिर से जिंदा हो उठता है। उनकी सोच थी कि आज़ादी का मतलब सिर्फ अंग्रेजों को भगाना नहीं, बल्कि एक ऐसा समाज बनाना है जहाँ हर इंसान को सम्मान और बराबरी का हक़ मिले।

उनकी शहादत हमें यह याद दिलाती है कि देशभक्ति सिर्फ नारे लगाने ये नहीं, बल्कि देश के लिए सोचने, समझने और उसके लिए कुछ कर गुजरने का नाम है।

क्या आप जानते हैं?

  • भगत सिंह ने अपने केस की पैरवी खुद की थी।
  • फाँसी के वक्त उनकी जेब में एक किताब थी – लेनिन की जीवनी।
  • उन्होंने जेल में कैदियों के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ 116 दिनों की भूख हड़ताल भी की थी।

भगत सिंह की विरासत सच्चे अर्थों में ‘इंकलाब’ की वह मशाल है जो आज भी हर उस नौजवान को रास्ता दिखाती है जो एक बेहतर भारत का सपना देखता है।